Maa Kaalratri  Vrat Katha: माँ कालरात्रि की कहानी

Maa Kaalratri Vrat Katha: माँ कालरात्रि की कहानी

Maa Kaalratri  Vrat Katha: माँ कालरात्रि की कहानी

मां दुर्गा के कुल नौ रूप हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान की जाती है - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। मां कालरात्रि भी इन्हीं में से एक हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है, जिसे महासप्तमी भी कहा गया है। मां दुर्गा ने ये अवतार बुराई का नाश करने हेतु लिया था। उन्होंने ये अवतार धारण कर शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज जैसे दानवों का वध किया था।

मां दुर्गा के इस रूप को सबसे शक्तिशाली माना गया है। इनके शरीर का रंग घने अंधेरे के भांति काला है और माता के अत्यंत लंबे केश, खुले और बिखरे हैं। मां कालरात्रि के गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला सुशोभित है। चार भुजाओं वाली कालरात्रि देवी, गधे पर मंदित रहती हैं। इनके बाएं हाथ में लोहे का कांटेदार अस्त्र अलंकृत है और दूसरे में एक कतार है। मां कालरात्रि का दायां हाथ, हमेशा ऊपर की तरफ उठा रहा है, जो लोगों को सदैव अपने आशीर्वाद से सुसज्जित रखता है। उनका निचला हाथ, भक्तों को आश्वासन देने के लिए है, कि वह माता के संरक्षण में भयमुक्त होकर रह सकते हैं। माता को गुड़ का भोग अति पसंद है और उन्हें लाल रंग के वस्त्र और रातरानी के फूल भी अत्यंत प्रिय हैं।

एक बार दैत्य शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज ने अपना आतंक तीनों लोकों में फैलाना शुरू कर दिया था। उस वक्त सभी देवगन, भगवान शिव के पास गए। जब भगवान शिव ने सभी देवताओं को चिंतित देखा, तो उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा। तब देवताओं ने शिव शंकर से कहा "हे भोलेनाथ, शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज नामक दानवों ने अपने उत्पाद से हम सभी को परेशान कर रखा है। कृपया कर हमारी मदद करें।" यह सुनते ही भोलेनाथ ने अपने समीप बैठी माता पार्वती की ओर देखा और उनसे, उन दानवों का वध करने की प्रार्थना की। भगवान शंकर की विनती सुनकर, देवी पार्वती ने उनके सामने नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद लिया और वहां से जाने की आज्ञा मांगी और दानवों का वध करने निकल पड़ीं।

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माता पार्वती ने दानवों का वध करने के लिए, मां दुर्गा का रूप धारण किया। इस रूप में वह सिंह पर सवारी करती हुईं अति मनमोहक और शक्तिशाली प्रतीत हो रही थी । माता को देख सभी राक्षस अचंभित हो गए। उन तीनों ने माता के साथ एक घमासान युद्ध शुरू किया। दैत्यों ने अपना पूरा बल लगा दिया, परंतु माता के सामने नहीं टिक पाए। आदिशक्ति ने शुंभ और निशुंभ का वध कर दिया। इसके पश्चात, मां ने रक्तबीज के साथ युद्ध करना शुरू किया।

रक्तबीज कोई मामूली दानव नहीं था। उसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान हासिल किया था। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दिया था, कि जब भी उसे कोई मारने का प्रयत्न करेगा, तब उसके शरीर से निकली खून की बूंदें जैसे ही धरती को स्पर्श करेगी, वैसे ही अनेक रक्तबीजों का जन्म होगा। इसी वरदान के अनुसार, जैसे ही माता ने उस पर प्रहार किया, उसकी खून की बूंदे धरती पर गिरीं और अत्यंत रक्तबीज प्रकट हो गए।

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उसी क्षण माता ने कालरात्रि का रूप धारण किया। मां दुर्गा के शरीर से एक ऊर्जा का संचार हुआ और मां कालरात्रि का निर्माण हुआ। भले ही वो दानव अति शक्तिशाली था, परंतु माता से जीत पाने का सामर्थ्य उसके अंदर नहीं था। मां कालरात्रि ने रक्तबीज को अपनी कटार से मार गिराया और जैसे ही उसके शरीर से खून बहने लगा, उन्होंने उसका रक्त पान कर लिया।

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मां कालरात्रि की पूजा, सप्तमी के दिन करने के पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण है। कहा जाता है, कि 6 दिन देवी की पूजा करने के बाद सातवें दिन हमारा मन सहस्त्रर चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में हमारा मन सबसे साफ और शुद्ध स्थिति में होता है। इस वक्त कालरात्रि की पूजा करने से हमें ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है और सारी असुरी शक्तियां हमसे दूर भाग जाती हैं।

माता कालरात्रि का जन्म कैसे हुआ था ? 

माता कालरात्रि का जन्म दुष्टों का नाश करने के लिए हुआ था, जब माता दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए, तब माता ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। 

माता कालरात्रि की पूजा विधि 

मां को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। रोली, कुमकुम आदि अर्पित करें। मां को मेवा, मिष्ठान व फलों का भोग लगाएं। मां कालरात्रि को शहद का भोग जरूर लगाना चाहिए। 

 

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