एक आदमी को कैसे मिला देवता का स्थान  - चौंका देने वाला इतिहास  - Rathi Devta!!

एक आदमी को कैसे मिला देवता का स्थान - चौंका देने वाला इतिहास - राठी देवता!!

दोस्तों ये तो आपको पता है कि उत्तराखंड देवो की नगरी है और भारत में कुल मिलाकर 33 करोड़ से भी ज्यादा देवी देवता हैं और इन देवी देवताओ की कहानिया आपके अंदर रोमांचित करने वाली है तो आज आपको ऐसी ही एक ही देवता की कहानी से रु बरू करवा काळा जिसकी कहानी आपको चौंका देगी तो सबसे पहले उसकी कहानी शुरू करें। आपसे निवेदन है कि इस ब्लॉग को पूरा पढ़ें ताकि आप उसकी असली कहानी सही से समझ सकें और आप उनके बारे में सब कुछ जान सकें और अच्छी लगें तो इसे शेयर जरूर करें। करना |
आइए शुरू करते हैं राठी देवता की सच्ची कहानी
दोस्तों रथी देवता न सिर्फ उत्तराखंड में बल्कि पूरे भारत में प्रसीद है, और ये प्रसिद्द है अपने शांत स्वभाव और उदारता के कारण, आप में बताएं दो रथी देवता पहले कोई देवता नहीं थे वो एक सामान्य इंसान थे जिसका नाम धन सिंह अधिकारी था | उनका घर जुआ पट्टी टेहरी गढ़वाल में था और उनके गांव का नाम अलेरू था, सामान्य लोगों की वो भी तरह रहते थे, गाय भैस चराना उनका शौक था, लेकिन एक नजर उनके गांव में फैली हुई हैजा में काफी लोगों की मौत हो गई और उसका शिकार हुआ वो भी हुए थे, उस नज़र से जो हुआ था उसे जलाते नहीं थे, उसे दफना दिया गया था धन सिंह अधिकारी को भी इसी तरह से दफनाया गया था, दफ़नाने के बाद वो लोग एक बार फिर आ गए जैसे आप लोगों ने सुना होगा की मौत के बाद आत्मा भटकती है है अगर उसे सही जगह न मिले तो,
मृत्यु के बाद उनकी आत्मा लोगों पर लगी जिसे लोग समझ नहीं पा रहे थे कि ये कौन है, उत्तराखंड में दोस्तों ये चीज काफी सामान्य है इसी तरह के लिए उत्तराखंड देवो की नगरी बोला जाता है |
रथी देवता की सच्ची कहानी
और जब काफी लोगों पे आने लगे तो वो किसी का नुक्सान नहीं करते थे बस लोगों की समस्या बताई गई थी और उनका समाधान किया गया था और जब सभी लोगों की समस्या का समाधान होने लगा तो सभी लोगों ने कहा ये कोई भूत प्रेत नहीं हो सकता ये कोई भी देवता हो सकता है जो किसी भी तरह की समस्या का समाधान कर सकता है, जब लोगों ने उनके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि जब उनकी मृत्यु हुई थी तो उस आंख में बहुत अच्छे नक्षत्र थे, जो पीछे से एक देवता का स्थान मिला, और जब भी किसी की समस्या का समाधान हुआ तो वो एक रथ पर सवार हो गए जिसके कारण उनका नाम रथी देवता पड़ गया
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हर साल अप्रैल 7 गति बैसाख को किलिखाल नामक स्थान पर आयोजित इस मेले में झा रथी देवता का मह मंदिर भी बना हुआ है, 1983 में इस मंदिर का मंदिर नई टिहरी में एक होटल के मालिक फूली सिंह जी से मिला था, जो इस मंदिर में काम करते थे। किसी नेपाली को था, इस वजह से दिया गया इस मंदिर का डिज़ाइन कुछ हद तक नेपाली मंदिर की तरह है |
दोस्तों धन सिंह रथी देवता के मंदिर में बची हुई साडी मूके पूरी तरह से होती है, आपको भी ऐसी जगह पर जाना चाहिए और उत्तराखंड में महान से एक्स्प्लोर करना चाहिए |
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3 टिप्पणियाँ

Mai bhi bht manti hu inko or humre yaha bhi sab sahi mai ye sare dukh dur kr dete hai bht parchadhri hai yaha humare uttrakhand walo ki hi nahi jo bhr ke bhi khusi se inke mandir mai aata hai unki bhi murad puri hoti hai

Ruchi Negi

Brother ye story nhi h rathi devta ki jo aapne btayi…ye glt story he…agr shi story janni h or history janni h to jagro ko suno tb likho…yunhi kuch v mt likho

Ashwini joshi

जय धन सिंह रथी देवताये नमो नमः।
धनसिंह रथी देवता सचमुच पर्चा धारी देवता हैं मैं और मेरा परिवार रथी देवता को बहुत मानते हैं, नियमित नाम नाम लेते हैं। और समय समय पर लाभान्वित भी हुए हैं।हम तो यही कहेंगे कि धन सिंह रथी देवता सबकी मनोकामना पूर्ण करे और सबको दीर्घायु प्रदान करें।सभी सुखी रहें।
जय हो धन्यवाद सिंह रथी देवता की।

नरेश मोहन जोशी

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