कश्मीर के देवता कैसे आये उत्तराखंड - हनोल महासू देवता का इतिहास हिंदी में
Rahul Rana
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हनोल महासू देवता इतिहास
महासू देवता जिनके न्याय के देवता माने जाते हैं और भगवान शिव के रूप में हैं, पूरे ब्रह्माण्ड में भगवान शिव ने अलग-अलग सिद्धांतों में, अलग-अलग स्थानों पर दर्शन दिए हैं, और इस जगह पर भी भगवान शिव के इस रूप की बिल्कुल आश्चर्यजनक कर देते हैं इस मंदिर की नीव पांडवो द्वारा बनाई गई थी जब वो भगवान शिव की तलाश में थे, तब उन्होंने हनोल महासू देवता की कहानी निकाली थी। दोस्तों इस मंदिर का निर्माण नई सदी में बताया गया है लेकिन पुरातत्व विभाग इसे 11 वी या 12 वी
विष्णु की मूर्तियां हैं, इस मंदिर की खुदाई के दौरान एएसआई को यहां शिव-शक्ति, लिंग, दुर्गा, लक्ष्मी, सूर्य, कुबेर सहित दो से अधिक देवी-देव की प्राचीन मूर्तियां मिली हैं। हनोल संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। यहां के लोग जो एक दिन रात महासू देवता की सेवा में रहते हैं वो इस गांव में हुनाभट्ट के नाम से एक ब्राह्मण रहते थे और उसी के नाम पर इस मदिर का नाम हनोल पड़ा पहले इसका नाम चक्रपुर था और महासू का मतलब है महाशिव जो के समय के सब जौन्सर बोली के अपभ्रंश के कारण महासू हो गए
और महासू देवता के देवता की मूर्ति की पूजा की जाती है जिसके बारे में लोग बहुत कुछ करते हैं लेकिन इस जगह पर एक ऐसी कहानी है जो आपको हैरान कर देने वाली है, उस समय इस इलाके में एक किरमिर नाम के राक्षस का आतंक बहुत ज्यादा फैला हुआ था। राक्षस नरभक्षी था और हर सप्ताह उसे एक इंसान की बलि दी जाती थी उसी गांव में भट्ट नाम का एक ब्राह्मण था जिससे 7 बच्चे थे और 7 में से 6 बच्चों को वो राक्षस खा गया था और अब 7 वे की थी बारी लेकिन हुना भट्ट ने अपने 7 सातवे पुत्रों को भागने के लिए भी कुछ करने की तैयारी की थी, तभी वह एक आकाशवाणी होती है इस राक्षस से अगर तुम बच जाओ और पूरे गांव को बचा लो तो अभी भी कश्मीर के लिए प्रस्थान करो वहां एक महासू देवता है जो अपने इस राक्षस से बच सकता है ये बात पता ही है कि हुना भट्ट कश्मीर के लिए निकल गया और वहां के महासू देवदेवता से अपनी राक्षसी खा गया, और यहां अपनी पूरी अपनी दुकान बताई,
दोस्तों महासू देवता कोई एक देवता नहीं है ये 4 भाइयो का एक समूह है जिनके नाम हैं, बासिक, चालदा महाराज, बोथा महाराज, पबासिक महाराज और ये चारो देवता भगवान शिव के अवतार हैं जो भगवान शिव के अवतार हैं, और जब इन चारो भाइयो से हुना भट्ट से मदद ली गई तो चारो देवता से आग्रह किया कि वे चक्रपुर को तैयार हो जाएं तब उन्होंने हुना भट्ट को कुछ चावल और फल दिए और कहा कि इसे जा कर अपने खेत में दाल देना और उनकी बताई गई तारीख को हल करने के लिए ले जाना हम वहां दिखाई देंगे। लेकिन इंसान हर बार जल्दी में होता है तो हुना भट ने दी गई आंख से पहले हल दिया तो जो सबसे बड़े भाई होते हैं जब वो निकल रहे होते हैं तो उनकी नजर लग जाती है तो यहां ये सिद्धांत है कि जो सबसे बड़े भाई बसिक महाराज जी दिखते नहीं हैं, तो जैसे ही हल आते हैं आगे दोनों महाराज जी होते हैं उनके पैर में लगते हैं तो ये हलके दिखने के कारण ये यात्रा नहीं होती,
और कार्यकर्ता हनोल संभालने की जिम्मेदारी दी गई है, तीसरे देवता पबासिक महाराज जी हैं जो हल हैं उनके कानों में लगता है कि यह आज से सुनने में अशुभ है और जो चौथा देववता है चलदा महाराज वो सही समय पर कायम हैं बाकी वो सेफ ह ।। तो जब चारो देवता प्रकट हुए तो उस किरमिर नाम के राक्षस का अंत हो गया और इस स्थान को महासू देवता मिले हुना भट्ट और सभी गाओ लोगों के महासू देवता से इसी गांव में हमेशा के लिए आग्रह करने लगे, और इस गांव का नाम चक्रपुर से हुना भट्ट के नाम पर अपभ्रंश होने के कारण हनोल पद। हनोल में चारो भाईयों की शक्ति है इसला यह मंदिर सबसे अधिक प्रसिद्द मंदिर है |
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2 टिप्पणियाँ
Ye galt btaya h kuki sbse bada bodtha
mashu h or unki per mai nahi ahk mai chot lgyi thi
Ye galt btaya h kuki sbse bada bodha mashu h or unki per mai nahi ahk mai chot lgyi thi