महासू देवता जो की न्याय के देवता माने जाते है और भगवन शिव के रूप है, पूरे ब्रह्माण्ड में भगवन शिव ने अलग अलग रूपों में, अलग अलग जगहों पर दर्शन दिए , और इस जगह पर भी भगवन शिव के इस रूप की बिलकुल हैरान कर देने वाली कहानी है, इस मंदिर की नीव पांडवो के द्वारा राखी गयी थी जब वो भगवन शिव की तलाश में हिमालय की ओर निकले थे चूंकि यह मंदिर हनोल महासू देवता है आपको सबसे पहले यहाँ की कहानी से परिचित करवाता हु की इस जगहं का नाम हनोल कैसे पड़ा , दोस्तों इस मंदिर का निर्माण नवी सदी का बताया जाता है लेकिन पुरातत्व विभाग इसे 11 वी i या 12 वी
सदी का बताते है, इस मंदिर खुदाई के दौरान ASI को यहां यहां शिव-शक्ति, शिवलिंग, दुर्गा, विष्णु-लक्ष्मी, सूर्य, कुबेर समेत दो दर्जन से अधिक देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां मिली हैं। इन्हें हनोल संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। यहाँ के लोग जो की दिन रात महासू देवता की सेवा में रहते है वो बताते है की इस गांव में हूनाभट्ट नाम का एक ब्राह्मण रहता था और उसी के नाम पर इस मदिर का नाम हनोल पड़ा पहले इसका नाम चकर पुर था , और महासू का मतलब है महा शिव जो की समय के सब जौऊंसर बोली के अप्ब्रंश के कारन महासू हो गया
और महासू देवता कश्मीर के देवता है जिनकी पूजा अर्चना वह के लोग ज्यादा करते है लेकिन इस जगह पर इनके आने की कहानी अपने आप में हैरान कर देने वाली है , उस वक़्त इस इलाके में एक किरमिर नाम के राक्षस का आतंक बहोत ज्यादा फ़ैल गया था वो राक्षस नर भक्षी था और हर हफ्ते उसे एक इंसान की बलि उसे दी जाती थी उसी गांव में होना भट्ट नाम का एक ब्राह्मण था जिसके 7 बच्चे थे और 7 में से 6 बच्चो को वो राक्षस खा चूका था और अब 7 वे की बारी थी लेकिन हुना भट्ट अपने 7 सातवे बेटे को बचने के लिए कुछ भी करने को तैयार था , तभी वह एक आकाशवाणी होती है की इस राक्षस से अगर तुमको बचना है और पूरे गांव को बचाना है तो अभी कश्मीर के लिए प्रस्थान करो वहां एक महासू देवता है जो तुम्हे इस राक्षस से बचा सकते है ये बात पता चलते ही हुना भट्ट कश्मीर के लिए निकल गए और वहां जाकर महासू ददेवता से अपनी गुहार लगाई , और उनको अपनी पूरी आप बीती बताई ,
दोस्तों महासू देवता कोई एक देवता नहीं है ये 4 भाइयो का एक समूह है जिनका नाम है , बसिक महाराज , चलदा महाराज, बोथा महाराज , पबासिक महाराज और ये चारो देवता भगवन शिव के अवतार है जो कश्मीर में रहते है , और जब इन चारो भाइयो से हुना भट से मदद मांगी तो चारो देवता इनके आग्रह पर चकरपुर आने को तैयार हो गए तब उन्होंने हुना भट्ट को कुछ चावल और फल दिए और कहा इसे जा कर अपने खेत में डाल देना और उनकी बताई गयी तिथि को हल लगाना हम वहां प्रकट होंगे लेकिन इंसान हर बार जल्दी में होता है तो हुना भट ने दिए गए वक़्त से पहले हल लगा दिया तो जो सबसे बड़े भाई होते है जब वो निकल रहे होते तो उनके आंख में लग जाती है तो यहाँ की ये मान्यता है की जो सबसे बड़े भाई बसिक महाराज जी है उनको दिखता नहीं है , तो जैसे ही हल आएगी चलता है आगे बोथा महाराज जी होते है हल उनके पैर में लगता है तो इनके हल लगने के कारण ये भ्रमण नहीं करते है ,
और इनको हनोल सँभालने की जिम्मेदारी दी गयी है, तीसरे देवता पबासिक महाराज जी है जो हल है इनके कान में लगता है इस आज से से सुनने में असमर्थ है और जो चौथे देववता है चलदा महाराज वो सही समय पर निकलते है इसीलिए वो सेफ रहते ह। तो जब चारो देवता प्रकट हुए तो उस किरमिर नाम के रक्षः का अंत हुआ और इस जगह को महासू देवता मिले हुना भट्ट और समस्त गाओ वालो के के आग्रह पर महासू देवता इसी गांव में हमेशा के लिए विराजमान हुए , और इस गांव का नाम चकरपुर से हुना भट्ट के नाम पर अप्ब्रंश होने के कारन हनोल पड़। हनोल में चारो भइओ की शक्ति है है इसिलए यह मंदिर सबसे ज्यादा प्रसिद्द मंदिर है |
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Ye galt btaya h kuki sbse bada bodtha
mashu h or unki per mai nahi ahk mai chot lgyi thi
Ye galt btaya h kuki sbse bada bodha mashu h or unki per mai nahi ahk mai chot lgyi thi